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Showing posts from May, 2015

माँ

माँ- दुःख में सुख का एहसास है, माँ - हरपल मेरे आस पास है । माँ- घर की आत्मा है, माँ- साक्षात् परमात्मा है । माँ- आरती, अज़ान है, माँ- गीता और कुरआन है । माँ- ठण्ड में गुनगुनी धूप है, माँ- उस रब का ही एक रूप है । माँ- तपती धूप में साया है, माँ- आदि शक्ति महामाया है । माँ- जीवन में प्रकाश है, माँ- निराशा में आस है । माँ- महीनों में सावन है, माँ- गंगा सी पावन है । माँ- वृक्षों में पीपल है, माँ- फलों में श्रीफल है । माँ- देवियों में गायत्री है, माँ- मनुज देह में सावित्री है । माँ- ईश् वंदना का गायन है, माँ- चलती फिरती रामायन है । माँ- रत्नों की माला है, माँ- अँधेरे में उजाला है, माँ- बंदन और रोली है, माँ- रक्षासूत्र की मौली है । माँ- ममता का प्याला है, माँ- शीत में दुशाला है । माँ- गुड सी मीठी बोली है, माँ- ईद, दिवाली, होली है । माँ- इस जहाँ में हमें लाई है, माँ- की याद हमें अति की आई है । माँ- मैरी, फातिमा और दुर्गा माई है, माँ- ब्रह्माण्ड के कण कण में समाई है । माँ- ब्रह्माण्ड के कण कण में समाई है । "अंत में मैं बस ये इक पुण्य का काम करता हूँ, दुनिया की सभी माँओं को दंडवत प्रणाम...

Dosti

पानी ने दूध से मित्रता की और उसमे समा गया.. जब दूध ने पानी का समर्पण देखा तो उसने कहा- मित्र तुमने अपने स्वरुप का त्याग कर मेरे स्वरुप को धारण किया है.... अब मैं भी मित्रता निभाऊंगा और तुम्हे अपने मोल बिकवाऊंगा। दूध बिकने के बाद जब उसे उबाला जाता है तब पानी कहता है.. अब मेरी बारी है मै मित्रता निभाऊंगा और तुमसे पहले मै चला जाऊँगा.. दूध से पहले पानी उड़ता जाता है जब दूध मित्र को अलग होते देखता है तो उफन कर गिरता है और आग को बुझाने लगता है, जब पानी की बूंदे उस पर छींट कर उसे अपने मित्र से मिलाया जाता है तब वह फिर शांत हो जाता है। पर इस अगाध प्रेम में..थोड़ी सी खटास- (निम्बू की दो चार बूँद) डाल दी जाए तो दूध और पानी अलग हो जाते हैं.. थोड़ी सी मन की खटास अटूट प्रेम को भी मिटा सकती है। रिश्ते में..खटास मत आने दो॥ "क्या फर्क पड़ता है, हमारे पास कितने लाख,कितने करोड़, कितने घर, कितनी गाड़ियां हैं, खाना तो बस दो ही रोटी है। जीना तो बस एक ही ज़िन्दगी है। फर्क इस बात से पड़ता है,कितने पल हमने ख़ुशी से बिताये, कितने लोग हमारी वजह से खुशी से जीए।

💐बहुत सुन्दर पंक्तिया सुख पर💐

💐 ऐ सुख तू कहाँ मिलता है क्या तेरा कोई स्थायी पता है क्यों बन बैठा है अन्जाना आखिर क्या है तेरा ठिकाना। कहाँ कहाँ ढूंढा तुझको पर तू न कहीं मिला मुझको ढूंढा ऊँचे मकानों में बड़ी बड़ी दुकानों में स्वादिस्ट पकवानों में चोटी के धनवानों में वो भी तुझको ढूंढ रहे थे बल्कि मुझको ही पूछ रहे थे क्या आपको कुछ पता है ये सुख आखिर कहाँ रहता है? मेरे पास तो दुःख का पता था जो सुबह शाम अक्सर मिलता था परेशान होके रपट लिखवाई पर ये कोशिश भी काम न आई उम्र अब ढलान पे है हौसले थकान पे है हाँ उसकी तस्वीर है मेरे पास अब भी बची हुई है आस मैं भी हार नही मानूंगा सुख के रहस्य को जानूंगा बचपन में मिला करता था मेरे साथ रहा करता था पर जबसे मैं बड़ा हो गया मेरा सुख मुझसे जुदा हो गया। मैं फिर भी नही हुआ हताश जारी रखी उसकी तलाश एक दिन जब आवाज ये आई क्या मुझको ढूंढ रहा है भाई मैं तेरे अन्दर छुपा हुआ हूँ तेरे ही घर में बसा हुआ हूँ मेरा नही है कुछ भी मोल सिक्कों में मुझको न तोल मैं बच्चों की मुस्कानों में हूँ हारमोनियम की तानों में हूँ पत्नी के साथ चाय पीने में परिवार के संग जीने मे...

एक संवाद......

मुशीं फैज अली ने स्वामी विवेकानन्द से पूछा : "स्वामी जी हमें बताया गया है कि अल्लहा एक ही है। यदि वह एक ही है, तो फिर संसार उसी ने बनाया होगा ?"  स्वामी जी बोले, "सत्य है।"  मुशी जी बोले ,"तो फिर इतने प्रकार के मनुष्य क्यों बनाये। जैसे कि हिन्दु, मुसलमान, सिख्ख, ईसाइ और सभी को अलग-अलग धार्मिक ग्रंथ भी दिये। एक ही जैसे इंसान बनाने में उसे यानि की अल्लाह को क्या एतराज था। सब एक होते तो न कोई लङाई और न कोई झगङा होता।"  स्वामी हँसते हुए बोले, "मुंशी जी वो सृष्टी कैसी होती जिसमें एक ही प्रकार के फूल होते। केवल गुलाब होता, कमल या रंजनिगंधा या गेंदा जैसे फूल न होते!"  फैज अली ने कहा सच कहा आपने यदि एक ही दाल होती तो खाने का स्वाद भी एक ही होता। दुनिया तो बङी फीकी सी हो जाती!  स्वामी जी ने कहा, मुंशी जी! इसीलिये तो ऊपर वाले ने अनेक प्रकार के जीव-जंतु और इंसान बनाए ताकि हम पिंजरे का भेद भूलकर जीव की एकता को पहचाने।  मुशी जी ने पूछा, इतने मजहब क्यों ?  स्वामी जी ने कहा, " मजहब तो मनुष्य ने बनाए हैं, प्रभु ने तो केवल धर्म बनाया है।"  मुशी जी ने क...

मैं शब्द, तुम अर्थ, तुम बिन मैं व्यर्थ

हे परमात्मा, अगर आपका कुछ तोड़ने का मन करे तो, मेरा ग़रूर तोड़ देना.. अगर आपका कुछ जलाने का मन करे, तो मेरा क्रोध जला देना.. अगर आपका कुछ बुझाने का मन करे, तो मेरी घृणा बुझा देना.. अगर आपका मारने का मन करे, तो मेरी इच्छाओं को मार देना.. अगर आपका प्यार करने का मन करे, तो मेरी ओर देख लेना.. "मैं शब्द, तुम अर्थ, तुम बिन मैं व्यर्थ