बेटी ही दहेज है
एक कवि नदी किनारे खड़ा था तभी उसने एक लड़की के शव को नदी मे बहते देखा तो कवि
ने प्रश्न किया:-
ने प्रश्न किया:-
कौन हो तुम ओ सुकुमारी
बह रही हो इस नदी जल मे
कोई तो होगा तेरा अपना
मानव निर्मित इस भू तल मे
किस घर की तुम बेटी हो
किस क्यारी की कली हो तुम
किसने तुमको छला है बोलो
क्यो दुनियां छोड़ चली हो तुम
बह रही हो इस नदी जल मे
कोई तो होगा तेरा अपना
मानव निर्मित इस भू तल मे
किस घर की तुम बेटी हो
किस क्यारी की कली हो तुम
किसने तुमको छला है बोलो
क्यो दुनियां छोड़ चली हो तुम
कवि राज मुझे क्षमा करे
गरीब पिता की बेटी हूं
इसलिए मृत मीन की भांति
जल धारा पर लेटी हूं
रूप रंग और सुंदरता ही
मेरी पहचान बताते है
कंगन चूड़ी मेहंदी बिंदिया
सुहागन मुझे बनाते है
पिता के दु:ख को दु:ख समझा
पिता के दु:ख मे दु:खी थी मैं
जीवन के इस पथ पर
पति के संग चली थी मैं
पति को मैने दीपक समझा
उसकी लौ मे जली थी मैं
मात पिता का आंगन छोड़
उस के रंग मे रंगी थी मैं
पर वो निकला सौदागर
लगा दिया मेरा भी मोल
धन दौलत दहेज की खातिर
जल मे मिला, दिया विष घोल
दुनिया रूपी इस उपवन मे
इक छोटी सी कली थी मैं
जिसको समझा था माली
उसी के द्वारा छली थी मैं
ईश्वर से अब न्याय मांगने
शव शैया पर पड़ी हूं मैं
दहेज के लोभी इस संसार मे
दहेज की भेंट चढ़ी हूं मैं ।।
गरीब पिता की बेटी हूं
इसलिए मृत मीन की भांति
जल धारा पर लेटी हूं
रूप रंग और सुंदरता ही
मेरी पहचान बताते है
कंगन चूड़ी मेहंदी बिंदिया
सुहागन मुझे बनाते है
पिता के दु:ख को दु:ख समझा
पिता के दु:ख मे दु:खी थी मैं
जीवन के इस पथ पर
पति के संग चली थी मैं
पति को मैने दीपक समझा
उसकी लौ मे जली थी मैं
मात पिता का आंगन छोड़
उस के रंग मे रंगी थी मैं
पर वो निकला सौदागर
लगा दिया मेरा भी मोल
धन दौलत दहेज की खातिर
जल मे मिला, दिया विष घोल
दुनिया रूपी इस उपवन मे
इक छोटी सी कली थी मैं
जिसको समझा था माली
उसी के द्वारा छली थी मैं
ईश्वर से अब न्याय मांगने
शव शैया पर पड़ी हूं मैं
दहेज के लोभी इस संसार मे
दहेज की भेंट चढ़ी हूं मैं ।।
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